السلام علیکم

दोस्तों मुल्क़ के तमाम मुस्लिम ग़रीब जरूरतमंद बच्चो को दीन के साथ-साथ स्कूली तालीम हासिल करवाने के लिए अपने घर के आसपास से ही शुरुआत कर के शिक्षा के चिरागों को रौशन करे!

اطلب العلم ولو كان بالصين
अल्लाह के नबी(सल्ल)ने फ़रमाया:- इल्म हासिल करो अगर चाहे चीन ही जाना पड़े                                              


अपने बच्चों को तालिमगाहों में दाख़िल करना आप का फ़र्ज़ है!

इल्म औलाद की ज़िन्दगी के लिए एक चराग़ की तरह है जिसकी रौशनी में गुमराही के राश्तों से बचा जा सकता है!


السَّلامُ عَلَيْكُمْ 
अनम इब्राहिम

मुल्क़-ए-हिन्दुस्तां के मुस्लिम तमाम ख़ूबियों और हुनरमंदी में सबसे अफ़ज़ल है लेकिन निहायत अफ़सोस के साथ ज़िक्र करना पड़ रहा है कि दुनियाभर के बाशिंदों इल्म तालीम और शिक्षा का अमलीज़ामा पहनाने वाली ये क़ोम हिंदुस्तान में 70%से ज़्यादा स्कूली तालीम से महरूम है। देश में एक बड़ा तबक़ा जमीन के नीचे और आसमान के ऊपर के इल्म को ही फ़र्ज़ समझ ज़ोर देता नज़र आ रहा है  और अज़बाबी इल्म तालीम शिक्षा की तरफ़ से पूरी तरह बेफ़िक्र दिखता है दूसरा तबक़ा मुस्लिम युवाओं का है जो दीनी तालीम के साथ साथ स्कूली तालीम पर भी जोर देने की आधी अधूरी कोशिशों में मुब्तिला है वतन-ए-हिंदुस्तान की आज़ादी के बाद से ये क़ोम आशिक्षा की खाई में गिरते चले गई देश के हर सूबे शहर व क़स्बों में स्कूली तालीम से दूर मुस्लिमो को मजदूरों की क़तार में ला खड़ा कर दिया स्कूली तालिमगाहों से दूरी का नतीज़ा की क़ोम के जवान पंचर बनाने   सड़को पर मैकेनिक का काम करने और मजबूरी के चलते हराम कारोबारों में भी मुब्तिला हो गया ज़्यादातर बेरोज़गारी के चलते मुस्लिम जवानों को गुमराही की डगर पर फ़िसलते देखा जा सकता है तरह तरह के नशे में धसती अशिक्षित बेरोजगार मुस्लिम जवानों की ज़िंदगी उन्हें अपराधी बना जेल की सालखो के पीछे ले जा रही है  

यारो इल्म हासिल करना उम्मते मुस्लिमा के फराइज में शामिल है!
 
नबी-ए-करीम (सल0) की मुबारक़ हदीसो में इल्म हासिल करने पर पुरजोशी से जोर दिया गया है। आप (सल्ल) ने जब मस्जिदे नबवी की तामीर की तो उसके साथ तालीम के लिए चबूतरा भी तामीर करवाया जिसपर बैठकर सहाबा हजरात इल्मे दीन सीखते थे और जिंदगी गुजारने के लिए आप से तहजीब और सलिखै  की बात भी मालूम करते थे। जिस दौर में  मस्जिदे नबवी की तामीर हुई आप और आपके सहाबा  बेइंतहां तंगी ग़रीबी निर्धनता से घिरे हुए थे, भूखे पेट रहते हुए और पेट पर पत्थर बांधे हुए भी मस्जिद के  चबूतरे पर तालीम हासिल करने का सिलसिला जारी रहता था अल्लाह के नबी ने मुसलमानों को यह तालीम दी  है कि मुसलमान भूका प्यासा रह सकता है मगर जैसे नमाज से दूर नहीं हो सकता उसी तरह इल्म हासिल करने से भी दूर नहीं रह सकता, जैसे नमाज फर्ज है उसी तरह इल्म हासिल करना भी फर्ज है। जैसा कि फरमाया गया है कि अगर इल्म के लिए तुम्हें विदेश भी जाना पड़े और दूर जाना पड़े तो हर हालत में इल्म हासिल करो। नबी करीम (सल्ल) ने फरमाया तुममें बेहतरीन शख्स वह है जो कुरआन पाक सीखे और सिखाए।
                   
  एक मरतबा हजरत इब्ने अब्बास (रजि) ने बचपन में आपके लिए तहज्जुद के वक्त वजू का पानी रखा। नबी करीम (सल0) तशरीफ लाए और पूछा कि यह पानी किसने रखा है। हजरत इब्ने अब्बास (रजि0) ने फरमाया मैंने। नबी करीम (सल0)खुश हुए और उन्हें दुआ दी। ऐ अल्लाह इसे कुरआन का इल्म अता फरमा। (बुखारी)

हजरत इब्ने अब्बास (रजि) से रिवायत है कि नबी करीम (सल्ल) ने इरशाद फरमाया कि लोगों को तालीम दो और उनके साथ आसानी का बर्ताव करो और सख्ती का बरताव न करो।

हजरत सफवान (रजि) इरशाद फरमाते हैं कि मैं नबी करीम (सल्ल) की खिदमत में हाजिर हुआ आप उस वक्त सुर्ख धारियों वाली चादर पर टेक लगाए तशरीफ फरमांए हुए थे। मैंने अर्ज किया या नबी करीम (सल्ल)! मैं इल्म हासिल करने आया हूं। आप (सल्ल) ने इरशाद फरमाया तालिबे इल्म को खुशआमदीद हो।
   

हजरत अबू बक्र (रजि) फरमाते हैं कि मैंने रसूलुल्लाह (सल्ल) को इरशाद फरमाते हुए सुना कि तुम आलिम बनो या तालिब इल्म बनों या इल्म को तवज्जो से सुनने वाले बनों या इल्म व इल्मवालों से मोहब्बत करने वाले बनों। इन चार के अलावा पांचवी किस्म मत बनों वर्ना हलाक हो जाओगे। यानी नबी करीम (सल्ल) फरमा रहे हैं कि जिंदगी में किसी भी तरह इल्म हासिल करो। इल्म से दूरी या इल्मवालों से बुग्ज और पढ़ने लिखने से अलाहदगी दूरी इंसान को बर्बादी तक पहुंचा देती है इसीलिए एक रिवायत में आप (सल्ल) ने फरमाया इल्म सीखो और लोगों को सिखाओ। रसूल (सलल) की बेशुमार हदीसों में से चंद रिवायतें नमूने के तौर पर पेश ए  नज़र हैं।

सहाबा (रजि) ने बड़ी उम्रों के बाद ईमान कुबूल किए इसलिए इल्म हासिल करने के लिए हमेशा तैयार रहते थे। हजरत अबू हुरैरा (रजि) तो हमेशा आप (सल्ल) की खिदमत में इल्म हासिल करते रहते थे। असहाबा-ए-सूफ्फा में आपका शुमार हुआ करता था। हजरत इब्ने अब्बास (रजि) जो नबी करीम (सल्ल) के रिश्ते में भाई थे बचपन में इल्म हासिल करने के लिए दूर का सफर करते थे और जिससे इल्म हासिल करना होता था उनके दरवाजे पर घंटो इंतजार करते थे कि जब बाहर तशरीफ लाएं तो हदीसें मालूम करें और सीखे।
                   हजरत अबू बक्र सिद्दीक (रजि) फरमाते हैं इल्म पैगम्बरों की मीरास  है और माल कुफ्फार फिरऔन और कारून की मिरास है। हजरत उमर (रजी) के क़ारोबार में  एक दूसरे सहाबी पार्टनर थे । दोनों साथ-साथ तिजारत करते थे। एक दिन हजरत उमर (रजि) तिजारत संभालते और दूसरे साहब आप (सल्ल) के खिदमत में इल्म हासिल करते थे। शाम को जो सीखा वह पूरा दूसरे को सिखाते थे और तिजारत (धंदे)के मुनाफे पर आधा-आधा कर लेते थे। इस तरह से तिजारत भी चलती थीं और  इल्म भी हासिल होता रहता था।

हजरत उस्मान गनी (रजि) ने फरमाया कि इल्म इतनी कीमती चीज है कि बगैर अमल के भी फायदा देती है। हजरत अली (रजि) से किसी ने पूछा कि इल्म बेहतर है या दौलत? आप ने फरमाया इल्म दौलत से बेहतर है। इसलिए कि दौलत कारून व फिरऔन को मिलती है  और इल्म पैगम्बरों को मिलता है। 
* इंसान को दौलत की हिफाजत करनी पड़ती है मगर इल्म इंसान की हिफाजत करता है। 
* दौलतवालों के दुश्मन बहुत होते हैं मगर इल्म वाले आदमी के दोस्त ज्यादा होते हैं। 
* दौलतमंद बखील होता है और इल्मवाला सखी होता है। 
* दौलत खर्च करने से घटती है और इल्म खर्च करने से बढ़ता है।
* दौलत को चोर चुरा सकते हैं इल्म को कोई नहीं चुरासकता। 
* दौलत गुरूर सिखाती है जबकि इल्म हिल्म सिखाता है। 
* दौलत की हद होती है और इल्म की कोई हद नहीं होती।
* दौलत का कयामत के दिन हिसाब देना होगा जबकि इल्म का कोई हिसाब नहीं। 
* दौलत से दिल में अंधेरा होता है और इल्म से दिल को रौशनी मिलती है।

इल्म की तकसीम नहीं है:- 
यह समझना जरूरी है कि इस्लाम ने दीनी और दुनियावी इल्म की कोई तकसीम नहीं की है। हर किस्म का इल्म और हुनर और हर फन मुसलमानों को हासिल करना चाहिए। जिससे खुदा की मआरिफत हासिल हो। आदमी को अच्छे काम करने में मदद मिले जिससे लोगों के हुकूक हक़ का पता चले। इस्लामी तहजीब और काम के हुनर मालूम हो और हर वह इल्म हासिल करे जिससे हलाल रोजी हासिल करने में मदद मिले। मुसलमान किसी भी तालीम के शोबे में पीछे रहे यह अल्लाह के नबी को पसंद नहीं है। आप ने मुख्तलिफ पेशे सीखने का हुक्म दिया और हौसला अफजाई फरमाई है। मुख्तलिफ जबानों के सीखने पर भी जोर दिया है।

एक सहाबी ने आप (सल्ल) से मुसाफहा फरमाया (हाथ मिलाया)तो आप ने महसूस किया कि उनके हाथ बेहद खुरदुरे और सख्त हैं। आपने पूछा कि तुम्हारे हाथ इतने सख्त क्यों हैं। सहाबी (रजि) ने जबाव दिया या नबी करीम (सल्ल) मैं रिज्क हासिल करने के लिए पत्थर फोड़ता हूं। आप (सल्ल) ने उन सहाबी के हाथों को बोसा दिया (हाथ चूमा) और फरमाया कि मुबारक हैं वह हाथ जो हलाल रोजी हासिल करने के लिए इतने सख्त हो गए हैं इसलिए कि हलाल कमाना और खाना फर्ज है नमाज के बाद दूसरा फर्ज है।

कुरआन पाक और हदीस और दीन का इल्म अपने बच्चों को सीखाने के बाद   माडर्न तालीम हासिल करने पर भी हमे जोर देना चाहिए  जिससे वो समाज मे अपना मक़ाम हासील कर दुसरो की मदद करने लायक बन सके!

 


तालीम-ए-निस्वां:- 
यही हिदायत हमारी बच्चियों के लिए भी है। औरतों को तालीम से दूर रखना इंतिहाई गलत बात है। एक पढ़ी लिखी मां की गोद से ही पढ़ी लिखी औलाद समाज को मिल सकती है। मां की गोद बच्चे के लिए सबसे पहला स्कूल है। इसलिए उसका पढ़ा लिखा होना बेहद जरूरी है। इसीलिए आप (सल्ल) ने जहां मर्दों को खिताब फरमाते थे वह औरते भी सुना करती थीं। इसके बावजूद अल्लाह के रसूल (सल्ल) खुसूसियत के साथ अलग मजलिस में सिर्फ उनको खिताब फरमाया करते थे। हजरत आयशा (रजि) इस दुनिया मे उम्मत की सबसे बड़ी आलिमा है  औरतों में दुनियाभर में उनसे बड़ा कोई आलीमा नही। आप (सल्ल)के विसाल के बाद कभी कभार सहाबा उनसे अपने मुश्किलात हल फरमाया करते थे। किसी दानिश्मंद का कौल है कि एक औरत को तालीम दे देना एक यूनिवर्सिटी खोल देने के बराबर है।
           लिहाजा इसके लिए तमाम मुसलमानों से यह अर्ज है कि अपनी औलाद को तालीम दिलाएं। हर हाल में तालीम दिलाएं। यह आप का फरीजा है। औलाद का हक है कि उनकी अच्छी तालीम व तर्बियत का इंतजाम किया जाए।

पैगम्बरे इस्लाम ने आज से चौदह सौ साल पहले वाजेह फरमा दिया कि मां-बाप की तरफ से औलाद को सबसे अजीम तोहफा उनकी अच्छी तालीम और तर्बियत है। यही उनके लिए दीन और दुनिया दोनों के एतबार से अच्छी नेमत है। बाकी सारी चीजें फानी(ख़त्म)होने वाली है। इसलिए अपनी औलाद को पढ़ाइए और मेहनत करके पढ़ाइए। एक वक्त भूके रहकर पढ़ाना पडे तो भूके रहकर पढ़ाइएगा। हर तकलीफ, मशक्कत व जद्दोजेहद को बर्दाश्त करके अपनी औलाद को इल्म के जेवर से आरास्ता कीजिए ताकि अल्लाह के पास जवाबदेही आसान हो। 
            अपनी औलाद से कमाना उनकी तालीम हासिल करने के वक़्त में कमाई को भेजना इस्लाम की नजर में अजीम जुर्म है। चंद सिक्को और रूपयों की खातिर अपनी औलाद का सुनहरा मुस्तकबिल भविष्य बर्बाद न करें।

अल्लाह पाक हम सबको अमल की तौफीक अता फरमाएं-आमीन।

अल्लाह पाक इस उम्मत के हर मर्द और औरत को अपनी मंशा के मुताबिक मोहब्बत और हिकमत के साथ भलाई को फैलाने वाला और बुराई से हटाकर नेकियों की तरफ लाने वाला बना दे
दोस्तो अल्लाह के ख़ातिर अपने आसपास के स्कूल नही जाने वाले मुस्लिम बच्चो पर नज़र रखो और उन्हें स्कूली तालीम के लिए ताक़ीत करो






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