السلام علیکم

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भोपाल


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मियां बीवी के दरमियां प्यार,मोहब्बत और यक़ीन एक दूसरे के हक़ अदा करने से पैदा होता है!!
भोपाल

                                                                                 بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيم

!!!!मियां बीवी में प्यार और मोहब्बत और यक़ीन एक दूसरे के हक़ अदा करने से पैदा होता है!!!!!

              السَّـــــــلاَمُ عَلَيــْــكُم وَرَحْمَةُ اللهِ وَبَرَكـَـاتُه

अनम इब्राहिम

 

एअल्लाह के बन्दे बन्दियों के लिए निक़ाह एक फूल के पौधे की तरह है जिसकी शाख़ों और पत्तियों में भी इज्ज़त की महक़ छुपी होती है मियां बीवी में निकाह उनके आपसी प्यार और मोहब्बत में छुपा हुआ है मतलब यह है कि मियां बीवी का रिश्ता दो रिश्तों में मिलकर बना है यह रिश्ता निरा हाकिम और प्रजा का रिश्ता नहीं जो जबरदस्ती करें जैसे ज़ालिम हाकिम अपनी रियाया पर हुकूमत करते हैं और रियाया मजबूरन उनके हुकमो को मानती है लेकिन उसको इस में कोई दिलचस्पी नहीं होती और वह उससे छुटकारे के मौकों के इंतजार में भी रहती है। जबकि शौहर की हुकूमत अपनी रजामंदी, अपने इरादे और मोहब्बत की वजह से तस्लीम की जाती है। मियां बीवी में इताअते ऐसी होती है जैसे पीर व उस्ताद अपने मुरीदों व शागिर्दों पर अंबिया अलैहिअस्लाम अपनी उम्मत पर और खुलफ़ाए राशि दीन अपने महकूमीन पर हुक्मरानी फरमाते हैं। और महकूमीन भी दिल व जान से दुनिया व आख़िरत की भलाई समझकर इताअत करते हैं और दिल से वाजिब इताअत मानते हैं। क्योंकि मियां बीवी में एक रिश्ता भी है यानि महबूबियत का एक दूसरे से प्यार का। एक दूसरे के महबूब है प्यारे हैं इसलिए अगरचे शौहर हाकिम और बीवी महकूक है लेकिन आपस में महबूबियत का ताल्लुक भी है। जैसे कोई आदिल हाकिम अपने किसी महकूम हो ऐसा शख्स अपनी माशूक महकूमा के साथ कैसा बर्ताव करेगा और कैसे हकीमाना रुआब रखेगा और कैसा बर्ताव करेगा वैसा ही बरताव यहां होना चाहिए और जिस तरह माशूका महकूमा जो अपने हाकिम आशिक कि इताअत और मोहब्बत दोनों का इजहार करेगी और दिल से इताअत करेगी ना कि मजबूरन ठीक इसी तरह यहां भी होना चाहिए। अगर मर्द कभी किसी वजह से शक्ति करें और नसीहत करे तो औरत अपनी इस्लाह सुधार के लिए ही समझे ना कि दुश्मनी और जुल्म। और अगर किसी वक्त औरत जवाब दें और लौट-पौट करें तो मर्द इसे उसका नाज़ और नखरा ही समझे ना कि दुश्मनी यानी मियां बीवी में निबाह की सूरतों का राज इन दो लफ़्ज़ों में छुपा हुआ है प्यार और मोहब्बत।

एक औरत के लिए जहां में उसके वाल्दैन के घर से रुखसती लेने के बाद सारा जहां उस का शोहर है और मर्द के लिए उसकी माँ के बाद क़ायनात का सबसे यक़ीनी रिश्ता उसकी बीवी है तो फिर भला दो हमसफ़र हमराह हमदम हमक़दम हमराज़ हमरुह हमसाया हमखुशी हमग़म एक दूसरे से खफ़ा कैसे रह सकते हैं इसलिए मियां बीवी एक दूसरे को ख़फ़ा करने से बचे और अपने इर्दगिर्द घर की दीवारों खिड़की दरवाज़े की किरचिंयों को मोहब्बत की चादर के टुकड़ों से भर दें कि कहीं से भी तक़रार के दाख़िल होने की गुंजाईश न रहे






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