मुस्लिम बस्तियां


मध्य प्रदेश-अन्य

टूरिस्ट व श्रद्धालुओं की खिदमत कर करते हैं गुजारा- पचमढ़ी
मध्य प्रदेश-अन्य

तादात कम और सुकून ज़्यादा!!

मध्य प्रदेश की सरज़मी पर कुदरत ने एक टुकड़ा जमीं का ऐसा हसीन बनाया है जहां का मंज़र देखने के बाद हर उदास दिल ख़ुशियों कि चपेट में आ जाता है। अक्सर पचमढ़ी के खूबसूरत नज़ारो का लुफ़्त लेने महज़ हिन्दुस्तां से ही नहीं बल्के तमाम मुलक़ो से भी नुमाइन्दे आते हैं ये ऐतिहासिक खूबसूरत शहर हरे-भरे घने पहाड़ो के दरमियां बसा है जिस का वजूद सनातन के देवी देवताओं के प्राचीन मठ मन्दिर व क़दीमी चर्च की मौज़ूदगी को दर्शाता है। बादलो को छूते बड़े बड़े पहाड़ो की उचाईयों से लेकर जमीन के नीचे तक की गहराइयों मे प्राचीन मठ मन्दिर मौज़ूद है। पचमढ़ी के नाज़ारों का दीदार करने के बाद कुछ इसे कश्मीर की बेटी कहते हैं तो कुछ इसे गुलाबी गांव के लक़ब से नवाज़ते है अक्सर लोग दूर दूर से फुर्सत के लम्हे गुज़ारने इन पहाड़ों के दरमियां आ ही जाते हैं जिनकी  आवक जावक से हर रोज शाहरवाशियों के रोजगार के रास्त्ते अज़बाबी शक्ल में खुल जाते है!!

पचमढ़ी दो टुकड़ों में आबाद है एक कैण्ट छावनी परिसर जो शहर का शुरुआती हिस्सा है दूसरा पचमढ़ी के बीच में सरहद की तरह खिंची हुई नदी के उस पार का हिस्सा है जिसे सिविल एरिया कहा जाता है जहां मुसाफ़िरों के क़याम के लिये कई पर्यटन व प्राइवेट आलीशान होटले मौज़ूद है। बहरहाल  पचमढ़ी की कुल आबादी 16 से 17 हज़ार है जहां सिर्फ 884 मकानों की मौज़ूदगी है जिसमे मुस्लिमो की तादाद तक़रीबन पच्चीस सो मुस्लिम बच्चे लगभग 1150 हैं यहां तीन मस्जिदें मौज़ूद है एक जामा मस्जिद जहां तब्लीग़ी जमातों के आने जाने के सिलसिले शुरु रहते है जामा मस्जिद में फ़ज़र और ईसा की नमाज़ में एक से दो शफ़े बनती है दो से तीन शफ़े रहती है।  दूसरी मोहम्मदी मस्जिद है जो सुन्नी बरेलवियों की है वहां भी दो से तीन शफ़े बनती है तीसरी मस्जिद पचमढ़ी में आर्मी मस्जिद है जहां आम मुस्लिम नमाज़ अदा नही करते बल्के मुस्लिम आर्मी अफ़सर व कर्मी ही नमाज़ अदा करते है क्योंकि की ये मस्जिद आर्मी एरिये की हदों में बनी हुई है बहरहाल कुल मिलाकर जहां दो से ढाई हजार नमाज़ियों को मस्जिद में नमाज़ अदा करना चाहिए वहां सिर्फ सो से देड सो नामाज़ी हैं पचमढ़ी में कोई तआम क़याम वाला मदरसा मौज़ूद नही है बस जामा मस्जिद व मोहम्मदी मस्जिद में बच्चे क़ुरआन सीखने आते है लगभग 11 सौ बच्चो में से सिर्फ 100 के आसपास ही बच्चे क़ुरआन सीखने जाते है स्कूली तालिमगाहों से एक बड़ा तबक़ा मुस्लिम बच्चो का अब स्कूल जाता है वरना कई सालों से यहां के मुस्लिम बच्चे स्कूली शिक्षा दूरी बनाए रखे हुए थे। ज़्यादा पड़े लिखे नही होने के चलते यहां के मुस्लिम अक्सर ज़िन्दगी गुज़ारने के लिए मुक़ामी रोज़गार में छोटीमोटी दुकानें लगाते है तो कुछ तुरिष्टों को घुमाने के लिए जिप्सियों को चलाते है तो कुछ यहां गाइड के काम को करते हैं बाकी 2पर्सन्ट शासकीय नोकरियों में शामिल है पचमढ़ी में कोई भी क़ूवत वाला मुस्लिम लीडर मौज़ूद नही है जब कोई मुसीबतें यहां के मुक़ामी मुस्लिमो पर आती है तो अल्लाह मुक़ामी हिन्दू नेता भाइयों से ही मदद व नुशरत करवाकर राहत पहुचाते है ।

इस इलाक़े में मौज़ूद मुसलमानों में दीनी तालीम व इस्लामिक तरबियत के लिए मुस्लिम इदारों की शख़्त ज़रूरत है व मुस्लिम बच्चे बच्चियों को स्कूली तालिमगाहों में दाखिलों की भी मौला पचमढ़ी के अमनोअमान को ता क़यामत तक क़ायम रखे और मुल्क़ के आपसी भाईचारे के लिए पचमढ़ी को इबरत का ज़रिया बनाए।






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