السلام علیکم


अल्लाह का ज़ाफ़ता है क़ानून है वो हर एक ज़रूरतमंद ज़िन्दगियों के लिए अपने नेक बन्दों को राहत परोसने का ज़रिया बनाता है! यारो मोहताज़गी में बसर ईमान वालो की दम तोड़ती ज़िन्दगियों को सहारा देकर दिली सुकून हासिल करें!

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भोपाल


कुल आबादी:उनतीस लाख &मुस्लिम आबादी: छः लाख बयालिस हज़ार छः सो चालीस

5 मासूम बच्चियों की पढ़ाई और बेरोज़गार बाप!!
भोपाल

 

 

       5 मासूम बच्चियों की पढ़ाई और बेरोज़गार बाप!!

कहानी नहीं मोहताज़ग़ी  की सत्यकथा है साहब.................

नवाबो की नगरी भोपाल में दम तोड़ती मजबूरो की ज़िंदगी 

मुस्लिम मददगाह की ख़बर 

सुबह सूबह जब क़ायनात में ज़िन्दगियाँ आंखे मलकर दुनिया का दीदार करती हैं तो उनमे से कुछ तो ताज़ा हवाओ के बीच सांस लेकर सुकून महसूस करते हैं तो कुछ लोगो का फ़िक्रों से दम भरने लगता है की आज क्या होगा? क्या आज क्या दफ़्तर से जल्दी फ़ारिग होकर बच्चो के साथ रह पाऊंगा? क्या आज ऑफिस टारगेट पूरा हो पायेगा? क्या आज गलफ्रेंड के साथ देड पर जा पाऊंगा? क्या आज फला शॉपिंग हो पाएगी? अरे आज तो फला दोस्त के साथ मूवी जाना था? अरे आज तो फला डॉक्टर के पास अपाइमेनट है ऐसे ही नाजाने कितनी हर रोज तरह तरह की मशरूफियात हर ज़िन्दगियों में दस्तक़ देती रहती है लेकिन क्या कोई दिल जागने से पहले भी बिस्तर कि सिलवटों पर ही चिंता की आग में तपता रहता है? हां मैं एक ऐसे ही ग़रीब बाप का दिल जानता हूँ जो तड़पता है अपनी बेटियों की ख्वाइशो को पूरा करने के लिए जो तड़पता है अपनी बच्चियों के स्कूली इन्तेज़ामो को पूरा करने के लिए जो तरसता है अपने परिवार की हर एक एक ख्वाइसों को  पूरा करने के लिए जिसकी सिसकियाँ चीख़ती तो है लेक़िन किसी को सुनाई नही देती!!!

भोपाल राजधानी: शाम ढ़लते ही झुग्गी बस्ती में मौज़ूद एक कच्चे घरौंदे में पांच नन्ही मासूम बच्चियां सादे मन से अपनी माँ ताहिरा के आंचल को पकड के सवाल करती हैं

अम्मी अम्मी अब्बू कब तक घर आएंगे? नादां  बच्चियों  के सवाल  पर  फ़िक्रों में तर ताहिरा अपने चेहरे पर झूठी मुस्कान बिखेरकर अपनी बच्चियों के सर पर सफक्कत का हाथ फेरते हुए कहती है मेरी प्यारी बच्चियों अब्बू जल्दी आ जायेंगे। रोज तो इतना इन्तेज़ार नही करते हो अब्बू का  आज क्या बात है? माँ ताहिरा के सवाल पर बड़ी बेटी 12 साल की अलीज़ा ने उम्मीदों के साथ कहा:

 अम्मी आज मुझे स्कूल के शूज़ लेने  बाजार जाना था अब्बू ने वादा किया था  की आज मुझे शूज दिलाने ले चलेंगे रोज स्कूल में मेम डांटती है शूज़ बदलकर आओ हर जगह से फट रहे हैं।

अलीज़ा की बाते पूरी हो भी नही पाई थी कि 10 साल की अदीबा बोल पड़ी अम्मी मेरी क्लास में सभी लड़कियां मेरी पुरानी यूनीफॉर्म को देख कर चिढ़ाती है अब्बू मुझे भी आज नई स्कूल ड्रेस दिलवाएंगे ना ? माँ ताहिरा अपनी बच्चियों की बातों को सुन रोज की तरह तसल्ली देते हुए कहती है अरे बच्चो आप के अब्बू का काम आज लग गया होगा अब्बू अगर आज जल्दी आ गए तो उनके साथ बाज़ार चले जाना ये कहकर माँ ताहिरा उदासी में डूब एक लम्बी सांस लेती है और मुह से निकलता है  या अल्लाह ये कैसा इम्तेहान है तेरा  काफ़ी लम्बे वक़्त से इनको काम नही मिला ऊपर से बच्चे और घर की जरूरतें बढ़ते चले जा रही है। इन्ही फ़िक्रों में ताहिरा का दिल शाम ढ़लते ढलते बेचैनियों की गहरी खाई में डूब जाता है और रात दिल के अंधेरे की तरह पूरी काली हो जाती है! और यहां  अब्बू का इन्तेज़ार करते करते पांचों बेटियां उम्मीदों को साथ मे लेकर सो जाती है। देर रात कच्चे घरोंदे के टूटे दरवाज़े पर क़दमो की आहट को सुन ताहिरा मुस्कुराकर रोज की तरह  इस्तक़बाल की मंशा से खड़ी हो दरवाज़े पर पहुच जाती है सामने अपने शोहर राशिद के उदास चेहरे पर झूठी मुस्कुराहट को बिखरता देख खुद के चेहरे पर भी मुस्कुराहट बिखेरते हुए सलाम करती है अस्सलामुअलैकुम एजी आज भी इतनी देरी से क्यों आए हो? ताहिरा के सवाल पर एक लंबी ख़ामोशी के बाद राशिद के लबो से निकलता है देर से नही आता तो और क्या करता? आज भी सुबह से मजदूरों के साथ पीठे पर खड़े खड़े सुबह से दोपहर हो गई थी लेकिन कोई काम नही मिला जल्दी आता तो अपनी मासूम बच्चियों से नज़र कैसे मिला पाता? उन्हें क्या कहता हर रोज बच्चो को झूठी तसल्ली देता रहता हूँ आज का भी तो बच्चियों से वादा किया था।  शोहर की बात सुनकर ताहिरा कह उठती है एजी फिक्र क्यों करते हो सब ठीक हो जाएगा अल्लाह हमारा हमेशा थोड़ी ना इम्तेहान लेगा बस इतना इंतेज़ाम हो जाता कि अफीफाह और तरन्नुम के स्कूल की फीस जमा हो जाती 4 महीने से हमने स्कूल की फीस नही भरी बाक़ी तो हम बाद में देख लेंगे  इतना कह ताहिरा ने बात बदलते हुए फिंर कहा आप खाना खा लीजिए !बिछे हुए अख़बार पर खाने की रकाबी में जब राशिद ने चावल देखे तो कहा ये क्या है ताहिरा रोटियां नही है क्या? राशिद की बात पर एक बार फिर ताहिरा कुछ लम्हे के लिए खामोशी में गुम हो जाती है ताहिरा को एक बार फिर राशिद ने कहा ताहिरा क्या हुआ रोटियां नही बनाई? ख़ामोशी  को तोड़ते  ताहिरा  झुठी मुस्कुराहट चेहरे पर ला कहती है   एजी आटा थोड़ा सा ही बचा था सुबह अदीबा और अलीज़ा स्कूल रोटी अचार लेकर जाती है इसलिए मैंने आज चावल बना लिया ! जिस पर राशीद  कहता है   कोई बात नही और  खाना खा कर बिस्तर पर चला जाता है।

बिस्तर पर लेटे लेटे अपनी सोती हुई बच्चियों के सर पर हाथ फेर एक मज़बूर बाप सोचने लगता है कि कल क्या होगा? बिस्तर जहां लोग फ़िक्रों से रिहा हो आराम करते हैं लेकिन ये ही बिस्तर एक ग़रीब बाप के लिए किसी सजा की तरह बन गया था लम्हे लम्हे में करवटों से  बिस्तर की  सिलवटों में बढ़ता इजाफ़ा  दिल और दिमाग़ में रह रहकर फ़िक्रों में बढ़ोतरी पैदा कर  एक मज़बूर बाप की बेचैनियां बड़ा रहा था  हालात हिम्मत को हसिए की धार पर रख हौसलों को काटते जा रहे थे चिंता भुझे हुए चराग़ों के बीच लफारे ले रही थी।

एक  मज़बूर बाप के लिए ये  रात किसी सजा से कम नही थी जो सुबह होने का इन्तेजार भी कर रहा था और सुबह के होने से डर भी रहा था कि आने वाली सुबह राहत बनकर आएगी या फिर से मुसीबतों का सबब बन जाएगी? मौला बच्चे तो दे लेकिन उनकी ख़्वाइसातो को पूरा करने का हर माँ बाप को इंतेज़ाम भी दे।

दोस्तों ग़रीब बाप की पांच मासूम बेटियां अलीज़ा, अदीबा, अफीफाह, तरन्नुम और ज़ेनब के स्कूली अखराजात को पूरा करने में मदद करने के लिए मौक़े पर पहुच के जो हो सके बसासत से मदद कर के दिली सुकून हासिल करलीजिये ।

नॉट: इस परिवार से राफ़ता क़ायम करने के लिए मुस्लिम मददगाह से  राफ़ता कायम कर सकते है हम आप को ले चलेंगे जरूरतमन्दों के दर पर।

 

दुआओ का तलबगार अनम इब्राहिम 






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