भोपाल


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प्यारे नबी और लोगों की खिदमत
भोपाल
आमाल-ए-नबी

प्यारे नबी और लोगों की खिदमत

हमारे आपके और सारे जहां के नबी हजरत मोहम्मद {सल्ल} ने अपनी सारी जिंदगी लोगों की खिदमत सेवा  करने और उनसे मोहब्बत करने में गुजारी है आपने नबी बनने से पहले भी लोगों के साथ अखलाक मोहब्बत और खिदमत के साथ अपनी जिंदगी गुजारी जिसकी वजह से लोग आपको सच्चा और अमीन यानी अमानत रखने वाला कहा करते थे आप बड़ों का आदर करते और बच्चों से मोहब्बत करते थे मोहब्बत की वजह से लोग बड़े बड़े फैसले आप से कराया करते थे एक दफा जब काबे की तामीर की गई तो हजरे अस्वद जो जन्नत का एक पत्थर है काबे में रखा है उसको उसकी जगह वापस रखने के लिए लोगों में आपस में लड़ाइयां होने लगी यहां तक कि तलवारें खिंच गई एक बुजुर्ग ने कहा कल जो सबसे पहले हरम में आएगा उससे हम अपना फैसला कराएंगे और वह फैसला हम सब मानेंगे दूसरे दिन अल्लाह का कर ना ऐसा हुआ के सबसे पहले हजरत मोहम्मद सल्ल  साहब हरम के अंदर  तशरीफ़ लाए  सब ने आपको देखते ही कहा आप सच्चे हैं आपका फैसला हम सब मानेंगे मोहम्मद साहब ने एक चादर मंगाई और सब से चादर का एक एक कोना पकड़ने को कहा और पत्थर को अपने हाथ से चादर में रखा फिर पत्थर को सब उस जगह ले गए जहां उसे रखना था वहां जाकर मुहम्मद साहब ने अपने हाथ से हजरे अस्वद को उसकी जगह पर रख दिया इस तरह आपने अपनी हिकमत से होने वाली बड़ी लड़ाई को टाल दिया आपकी हिकमत अदब और मोहब्बत ने लोगों का दिल जीता था

 

 

डॉ ज़िया उल हसन 

भोपाल से 






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