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आख़िरत पर ईमान लाना और बदले हिसाब पर यकीन करना
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आखरत

आखिरत पर ईमान लाना :

आखिरत का दिन कयामत का दिन हैं जिस दिन दुनिया खत्म कर दी जायेगी और शुरु दुनिया से ले कर कयामत तक पैदा होने वाले तमाम लोग दुबारा ज़िन्दा करके उठाये जायेगे| उसे आखिरत का दिन इसलिये कहा जाता हैं के क्योकि सिर्फ़ उसी दिन हर इन्सान के दुनिया मे किये गये अमल का हिसाब होगा और उसके अमल के मुताबिक उसे जहन्नम या जन्नत मे रहने को दिया जायेगा| आखिरत के दिन पर ईमान लाने से मुराद इस बात से हैं के हर इन्सान जान ले के एक दिन उसे अल्लाह के सामने पेश होना हैं और उसके दुनिया मे किये गये अमल-दखल का हिसाब देना होगा| लिहाज़ा हर इन्सान ये जान ले के उसे उसके किये के मुताबिक ही बदला दिया जायेगा जहन्नम या जन्नत के तौर पर लिहाज़ा हर इन्सान को चाहिये के दुनिया मे रहते हुए अल्लाह के हुक्म पर चले ताकि उसे आखिरत मे अच्छा सिला मिले| आखिरत पर ईमान रखने के साथ तमाम इन्सान को इस बात पर भी गौर करना हैं जिसका बिना यकीन के आखिरत का ईमान मुकम्मल नही हो सकता|


दुबारा कब्र से उठाये जाने पर ईमान :

हर इन्सान जो कयामत होने से पहले दुनिया मे पैदा होगा उसे अल्लाह दुबारा ज़िन्दा करेगा| जब फ़रिश्ता सूर फ़ूकेगा और तब सारे लोग अल्लाह के सामने बिना कपड़ो के पेश होगे| सबसे पहले नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम की कब्र फ़टेगी इसके बाद दूसरे लोगो कि|

बदला और हिसाब पर ईमान :

हर इन्सान जो इस दुनिया मे भेजा गया उसका हर अमल जो दुनिया मे किया चाहे अच्छा या बुरा उसका हिसाब होगा और उसके अमाल के मुताबिक उसे जन्नत और जहन्नम मे जगह दी जायेगी| किसी पर भी ज़र्रा बराबर भी ज़ुल्म न होगा| इसके बाद जन्नती जन्नत मे जहन्नमी जहन्नम मे हमेशा हमेशा रहेगे फ़िर न किसी को मौत आयेगी न किसी को दुबारा दुनिया मे वापस आकर नेक काम करके अपनी आखिरत सवारने का मौका दिया जायेगा|

जन्नत और जहन्नम पर ईमान लाना :

जन्नत और जहन्नम इन्सान का आखिरी ठिकाना हैं जिसे अल्लान ने अपने बन्दो के लिये तैयार किया हैं जन्नत मोमिन और अल्लह से डरने वाले नेक बन्दो के लिये और जहन्नम काफ़िर और सरकश बन्दो के लियए जिन्होने अल्लाह के साथ शिर्क किया और हमेशा अल्लाह के हुक्म की नाफ़रमानी करी| ये दोनो जगहे ऐसी हैं जिसे ना किसी इन्सान ने अभी तक देखा ना किसी इन्सान ने इसके बारे अभी तक अहसास किया| जन्नत मे लोग अपने दुनिया मे किये गये अमल के मुताबिक अलग-अलग दर्जो के हिसाब से जगह पायेगे| अकसर लोग ये गुमान करते हैं के वो दुबारा कैसे ज़िन्दा किये जायेगे| इस बारे मे कुरान एक खुली चुनौती देता हैं उन इन्कार करने वालो के लिये जो दुबारा जी उठने पर यकीन नही करते| कुरान मे अल्लाह ने अलग-अलग कई जगहो इन्सान के दुबारा जी उठने के बारे मे बताया हैं ताकि इन्सान इस बात पर गौर फ़िक्र करले के इन्सान को जिस तरह अल्लाह ने अभी पैदा किया ठीक उसी तरह दुबारा पैदा करना अल्लाह के लिये कोई मुश्किल काम नही| आसमानी किताब (अल्लाह की किताब) पर ईमान लाना :

किताबो पर लाने से मतलब वो किताबे हैं जिसे अल्लाह ने अपने रसूलो को दिया ताकि वो अल्लाह के बन्दो को एक कानून के तहत जोड़ सके और उस किताब मे लिखे अल्लाह के कानून पर अमल कर अपनी ज़िन्दगी को अल्लाह के बताये तरीके पर गुज़ार सके जिससे बन्दे कि दुनिया और आखिरत संवर सके| किताबो को उतारने का मकसद सिर्फ़ ये के इन्सान को जब भी कोई परेशानी हो या किसे मसले का हल तलाशना हो तो वो सीधे अल्लाह की तरफ़ रुजू करे और अपने मसले को हल करे न के अपने आप से ही बिना सोचे समझे किसी मसले पर खुद का मालिक बन के फ़ैसला करे| हकीकतन मालिक सिर्फ़ एक हैं और वो हैं अल्लाह लिहाज़ा बन्दो के तमाम ज़िन्दगी के आने वालो मसले का हल सिर्फ़ अल्लाह की किताब मे हैं| किताबो पर ईमान लाने से मतलब ये भी हैं के जो किताबे अल्लाह ने अपने रसूलो को दी हैं उन्हे अल्लाह की ही बात समझा जाये क्योकि अल्लाह ने खुद किताब नही लिखी बल्कि अपने रसूल को दी जिसके ज़रिये अल्लाह की बात एक से दूसरे इन्सान तक पहुची| इसलिये किताबो पर बिना चू-चरा के इस बात पर यकीन करना ईमान का हिस्सा हैं| जिस तरह अल्लाह ने मुहमम्द सल्लललाहो अलेहे वसल्लम को कुरान मजीद दी उसी तरह पिछली कौमो मे भी अपने रसूल के ज़रिये किताबे(शरियत या कानून) भेजी
* जैसे ईसा अलैहिस्सलाम को इंजील,
* मूसा अलैहिस्सलाम को तौरेत और
* दाऊद अलैहिस्सलाम को ज़बूर दी|
* आज ये किताबे अपनी असल हालत मे मौजूद नही
* और न ही इन किताबो की शरियत पर अमल करना हैं
* लेकिन फ़िर भी मुसलमान के लिये ये लाज़िम हैं बल्कि ईमान क एक हिस्सा हैं के
* इन किताबो पर ईमान लाये के ये अल्लाह की ही किताब हैं गौर|
* इसके अलावा पिछली किताबे जैसे इंजील, तौरेत और ज़बूर इस बात की
* शहादत देती हैं के कुरान अल्लाह की आखिरी किताब हैं
* जो के मुहम्मद सल्लललाहो अलेहे वसल्लम पर उतारी गयी
* और यही आखिरी शरियत हैं जिसे अल्लाह ने कयामत तक के लिये बाकि छोड़ा
* लिहाज़ा हर इन्सान चाहे वो किसी मुल्क का हो या किसी कौम का सबके लिये लाज़िम हैं के वो कुरान पर ईमान लाये और मुसलमान हो जाये|
पिछ्ली शरियत मे

अल्लाह की किताबे :
आज अपनी असल हालत मे मौजूद नही न ही अब वो शरियत मक्बूल हैं इसमे सबसे अहम बात ये हैं के पिछ्ली किताबे किसी को याद नही लेकिन कुरान की खासियत ये हैं के अल्लाह ने इसे इतना आसान कर दिया के 1400 सालो से आज तक लातादाद ऐसे लोग गुज़रे जिन्होने कुरान को याद (हिफ़्ज़) किया उसके अलावा खुद अल्लाह ने कुरान की ज़िम्मेदारी ली के इसे कयामत तक कोई नही बदल पायेगा बल्कि कुरान खुद इस बात का खुला चैलेन्ज करती हैं| 1400 सालो से आज तक कुरान वैसा ही मौजूद हैं जैसा अल्लाह ने इसे नबी सल्लललाहो अलेहे वसल्लम पर उतारा था|






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