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अल्लाह की बन्दगी और माँ-बाप की फरमाबरदारी का हुकुम देता है क़ुरआन!!
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हक़-ए-वालदैन

खुदा के बाद वालदैन (माँ बाप) के एहसानों का नतीज़ा है हर सख़्स की बुलन्दी अल्लाह खुद अपनी किताब क़ुरआन मज़ीद में अपनी ईबादत के बाद माँ बाप की फरमाबरदारी के हुक्म पर ज़ोर देता है।   
तेरे रब ने हुक्म कर दिया है, सिवाए अल्लाह के किसी और की इबादत ना करो और तुम अपने मां बाप के साथ अच्छा बर्ताव किया करो अगर तेरी मौजूदगी में माँ-बाप एक या दोनों बुढ़ापे को पहुंच जाएं तो उनके आगे हूं तक ना करना और ना उनको झीड़कना  उनसे खूब अदब व है एहतिराम से बात करना और उनके सामने मुहब्बत और अदब से झुके रहना और उनके लिए यह दुआ करते रहना कि ए मेरे परवरदिगार इन दोनों पर रहम फरमा जैसा कि इन्होंने मुझको बचपन में पाला पोसा मुझ पर रहम किया मुझ से मोहब्बत की मेरा ख़्याल रखा 

हम जब अपने माँ बाप की ख़िदमतगुज़ारी करेंगे तो यक़ीनन हमारी औलादों से फरमाबरदारी की उम्मीद कर सकेंगे इस्लाम हर तरह से माँ बाप के हुकुम को सर आंखों पर रखने पर ज़ोर देता है। एक नेक़ माँ जब अपने जवान बेटे से कह दे कि अपनी बीवी को छोड़ दे तो गोया उस वक़्त का फ़ैसला मा के हक़ में ही लेना चाहिए 
हर घर में माँ की मौज़ूदगी हिफ़ाजत का पहला दरवाज़ा है जिस घर मे माँ नही उस दहलीज़ घरौंदा नही मक़ान समझना ही समझदारी है।






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